मै रोया प्रदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार !!

Wednesday, April 9, 2008

माँ दरअसल आकाश है!



मां पर लिखना नहीं चाहिए।
बोले तो मां अलिख्य विषय है।
मां दरअसल आकाश है,
उस पर क्या लिखो,
कहां से शुरु करो,कहां खत्म करो,
कहां लपेटो।उस आकाश की छांह में पड़े रहो,
लिखने-ऊखने का मामला बेकार है।
कित्ता भी लिख लो,
आकाश को समेटना संभव कहां है भला।


alok puranik जी ने October 27th, 2007 ,8:59 pm

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