सुख का उदगम माँ की गोद
है संतान की इच्छाओं का ,स्तर -स्तर हर्षित
रहेमाता-पिता सर्वस्व लुटाने बरबस रहते तैयार
सुरपुर का सब मीठा फल रखते उसके लिए संभाल धिक्कार है
ऐसे संतान को , बावजूद इसकेअपने बूढे माता -पिता से ,
विमुख होकर जीतारखता नहीं उनका खयाल,
तब भी पिता चाहतामेरे पुत्र का बाल नहाते वक्त भी न
टूटेन ही पाँवों में पड़े कंकड़ी का दागव्यर्थ है उसकी साधना ,
पूजा -पाठ , सन्यासकर में धर्मदीप न हो ,
तो सब है बकवास चित्त प्रभु के चरणों में,
चाहे जितना लगा लेजितना कर ले
दान - पुण्य , तप , उपवास नहीं मिलने वाला सुख - शांति का आवास
क्योंकि सुख का उदगम माँ की गोद
हैपिता का प्यार है और है सेवा-धर्म
प्रयासइसलिए दायित्व ग्रहण कर एक अच्छे संतान काक्या है माता- पिता की इच्छा , जान चिंता कर किसी भी बुरे कर्म के लिए चरण उठाने से
पहल्रेसोचो कहीं तुम्हारी पद- ध्वनियाँ , तुम्हारी आने- वाली पीढियों के कानों तक तो नहीं पहुँच रहीक्योंकि जैसा संदेश , भूमि से अम्बर को जायगावहाँ से आने वाला , वैसा ही तो आयगाहो कोई दुनिया में ऐसा कोई माता-पिता दिखाजो हाथ जोड़कर , देव - देवताओं से कहेहे देव ! हमें जीने दो , मरे हमारे बच्चे सगहेवे तो चाहते , बरसे रंग रिमझिम कर गगन सेभीगे मेरे संतान का स्वप्न निकलकर मन से
No comments:
Post a Comment