मै रोया प्रदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार !!

Thursday, March 20, 2008

Dr. Srimati Tara Singh

सुख का उदगम माँ की गोद
है संतान की इच्छाओं का ,स्तर -स्तर हर्षित
रहेमाता-पिता सर्वस्व लुटाने बरबस रहते तैयार
सुरपुर का सब मीठा फल रखते उसके लिए संभाल धिक्कार है
ऐसे संतान को , बावजूद इसकेअपने बूढे माता -पिता से ,
विमुख होकर जीतारखता नहीं उनका खयाल,
तब भी पिता चाहतामेरे पुत्र का बाल नहाते वक्त भी न
टूटेन ही पाँवों में पड़े कंकड़ी का दागव्यर्थ है उसकी साधना ,
पूजा -पाठ , सन्यासकर में धर्मदीप न हो ,
तो सब है बकवास चित्त प्रभु के चरणों में,
चाहे जितना लगा लेजितना कर ले
दान - पुण्य , तप , उपवास नहीं मिलने वाला सुख - शांति का आवास
क्योंकि सुख का उदगम माँ की गोद
हैपिता का प्यार है और है सेवा-धर्म
प्रयासइसलिए दायित्व ग्रहण कर एक अच्छे संतान काक्या है माता- पिता की इच्छा , जान चिंता कर किसी भी बुरे कर्म के लिए चरण उठाने से
पहल्रेसोचो कहीं तुम्हारी पद- ध्वनियाँ , तुम्हारी आने- वाली पीढियों के कानों तक तो नहीं पहुँच रहीक्योंकि जैसा संदेश , भूमि से अम्बर को जायगावहाँ से आने वाला , वैसा ही तो आयगाहो कोई दुनिया में ऐसा कोई माता-पिता दिखाजो हाथ जोड़कर , देव - देवताओं से कहेहे देव ! हमें जीने दो , मरे हमारे बच्चे सगहेवे तो चाहते , बरसे रंग रिमझिम कर गगन सेभीगे मेरे संतान का स्वप्न निकलकर मन से

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