माँ को अपने बेटे का ईंतजार ...
आप से बाहर भले ही डाक्टर, वकील, व्यापारी और बुद्धिजीवी
बने रहें लेकिन शाम को जब घर पहुंचे तो अपने पेशे को
बाहर छोड्कर हे घर में प्रवेश करें ! कारण कि
वहाँ तुम्हारे दिमाग कि नहीं दिल की जरुरत है. घर पर कोई मरीज, मुवक्किल, ग्राहक
थोडी न तुम्हारा ईंतजार कर रहा है, जो तुम डाक्टर, वकील या
व्यवसायी बनकर घर लौट रहे हो!
वहाँ तो एक माँ को अपने बेटे का, पत्नी को अपने पति का
और बच्चों को अपने पिता का इंतजार है !
शाम को अपने घर पिता, पति और पुत्र की हैसियत से ही लौटना चाहिये !
--- आदरनीय मुनि श्री तरुणसागरजी
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