मै रोया प्रदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार !!

Saturday, February 16, 2008

माँ की किरणों से रोशन था वो

माँ का अहसान बच्चों पर है, उसको ध्यान में रखते हुए श्री बोधराज जफर ने फरमाया है – “ जिस व्याक्ति के सिर पर माँ-बाप लका साया है उंनको भगवान की भक्ति की भी कोई जरुरत नहीं, क्योंकि आनंद स्वरूप माँ-बाप बोलते-चालते और जीते-जागते भगवान के रूप में इनके घर में मौजूद है!” वैसे तो इंसान माँ-बाप के एहसानों का बदला सात जन्म में भी नहीं उतार सकता, क्योंकि माँ-बाप ने ही बच्चों को संसार की हर आँधी, तूफान , और गर्द-गूबार से बचाकर उसका पालन-पोषण किया है, बडा किया, शिक्षा-दिक्षा दिलाई और बच्चे के जवानी में कदम रखते ही उसका विवाह भी किया !
अपने खून-पसिने की कमाई को नि:संकोच सीर्फ अपने बच्चे के किये पानी की तरह बहा दिया और बच्चे की प्रसन्नता को ध्यान में रखते हुए उसके भविष्य का हर हालत और हर कीमत पर ध्यान रखा. बुजुर्गों ने सच ही कहा है :-
“ सोने की सिल गले , आदम का बच्चा पले ! “
परंतु माँ का चरित्र तो और भी सुन्दर और महत्तवपुर्ण है जिसने पूरे नौ मास बच्चे को अपने पेट में रखकर और सख्त से सख्त तकलीफ सहन करके और कई सैकडो परहेज करके जिन्दगी और मौत के मध्य लटककर उसे जन्म दिया , सख्त सर्दी की रातों मेँ बच्चों के पेशाब से तर बिस्तर को बदल-बदलकर स्वयं पेशाब से तर बिस्तर पर सोना और बच्चे को खुश्क बिस्तर पर सुलाना और ढाई तीन वर्ष तक मल-मूत्र से उसको साफ करना क्या महत्त्व नहीं रखता.
वह चेहरा क्या, सूरज था? खुदा था या पैगम्बर था ?
वह चेहरा जिससे बढ्कर खूबसूरत कोई चेहरा हो ही नहीं सकता,
कि वह एक माँ का चेहरा था !
जो अपने दिल के ख्वाबों , प्यार की किरणों से रोशन था !!

` साभार : Gruhsthgeeta, Colkata `

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