वर्तमान में नारी-जाति का महान तिरस्कार घोर अपमान किया जा रहा है, नारी के महान मातररूप के नष्ट करके उसको मात्र भोग्या स्त्री का रूप दिया जा रहा है, भोग्या स्त्री वेश्या होती है जितना आदर माता का है, उतना आदर स्त्री (भोग्या) का नहीं है, परन्तु जो स्त्री को भोग्या मानते है, स्त्री के गुलाम है वे भोगी पुरुष इस बात को क्या समझे ? समझ ही नहीं सकते ! विवाह माता बनने के लिए किया जाता है! भोग्या बनने के लिये नहीं, संतान पैदा करने के किये ही पिता कन्यादान करता है! और संतान पैदा करने के लिये ही वरपक्ष कन्यादान स्वीकार करता है. परंतु आज नारी को माँ बनने से रोका जा रहा है और उसको केवल भोग्या बनाया जा रहा है. यह नारी -जाति का कितना महान तिरस्कार है ? वास्तव में मातरी-शक्ति है, वह स्त्री और पुरुष दोनों की जननी है, पत्नी तो केवल पुरुष की ही बनती है, पर माँ पुरुष की भी बनती है और स्त्री की भी. पुरुष अच्छा होता है तो उसकी महिमा अपने कुल में ही होती है पर स्त्री अच्छी होती है तो उसकी पीहर और ससुराल दोनो पक्षों में महिमा होती है. राजा जनकजी सीताजी से कहते है :
"पुत्री पबित्र किए कुल दोऊ"
आजकल स्त्रियों को पुरुष के समान अधिकार देने की बात कही जाती है. पर शास्त्रों नें माता के रूप में स्त्री को पुरुष की अपेक्षा विशेष अधिकार दिया है : " सहस्त्रं तु पितरन्माता गौरवेणातिरिच्यते !! " माता का दर्जा पिता के दर्जे से हजार गुणा अधिक माना गया है. "
सबके द्वारा सन्यासी को भी माता की प्रयत्नपूर्वक वन्दना करनी चाहिये . "माँ" शब्द कहने से जो भाव पैदा होता है , वैसा भाव "स्त्री" कहने से नहीं होता. इसलिये श्रीशंकराचार्यजी महाराज भगवान गोविन्द को भी ''माँ" कहकर पुकारते है. वन्दे मातरम में भी माँ की वन्दना की गई है. हिन्दू धर्म में माता-शक्ति की उपासना का विशेष महत्व है. ईश्वरकोटि के पाँच देवताओं में भी माँ दुर्गा (भगवती) का स्थान है. देवी भागवत , दुर्गासप्तशती आदि अनेक ग्रंथ माँ शक्ति पर ही रचे गये है. जगत की सम्पूर्ण स्त्रियों को भगवती ( माँ) शक्ति का ही रूप माना है.
"विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: ! स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु !!"
संसार के हित के लिये माँ-शक्ति ने बहुत काम किया है. रक्त-बीज आदि राक्षसों का सहांर भी मात शक्ति ने ही किया है. मात-शक्ति ने ही हमारी हिन्दू सभ्यता की रक्षा की है. आज भी प्रत्यक्ष देखने में आता है कि हमारे व्रत- त्यौहार, रीति-रिवाज, माता-पिता के श्राद्ध आदि की जानकारी जितनी स्त्रियों को रहती है, उतनी पुरुषों को नहीं रहती. पुरुष अपने कुल की बात भी भूल जाते है, पर स्त्रियाँ दूसरे कुल के होने पर भी उंनको बताती है कि अमुक दिन आपकी माता या पिता का श्राद्ध है, आदि. मन्दिरों में, कथा-कीर्तन में, सत्संग में जितनी स्त्रियाँ जाती है, उतने पुरुष नहीं जाते . कार्तिक- स्नान , व्रत, दान, पूजन, रामायाण आदि का पाठ जितना स्त्रियाँ करती है, उतना पुरुष नहीं करते . तात्पर्य है कि स्त्रियाँ हमारी संस्क्रिति की रक्षा करने वाली है. अगर उनका चरित्र नष्ट हो जायेगा तो संस्क्रिति की रक्षा कैसे होगी ? एक श्लोक आता है :
असंतुस्टा द्विजा नष्टा: संतुष्टश्च महीभुज : !
सलजा गणिका नटा निर्लज्जश्च कुलाग्ना: !!
(चाण्क्य निति. 8/98)
" संतोषहीन ब्राह्मण नष्ट हो जाता है, संतोषी राजा नष्ट हो जाता है. लजावती वेश्या नष्ट हो जाती है और लजाहीन कुलवधु नष्ट हो जाती है अर्थात उसका पतन हो जाता है. वर्तमान में संतति निरोध के क्रत्रिम उपायों के प्रचार-प्रसार से स्त्रियों में लजा , शील, सतित्व,सच्चरित्रता , सदाचरण आदि का नाश हो जाता है. परिणामस्वरूप स्त्रि-जाति केवल भोग्य वस्तु बनती जा रहै है. यदि स्त्रि-जाति का चरित्र नष्ट हो जायेगा तो देश की क्या दशा होगी ? आगे आने वाली पीढी अपने प्रथम गुरु माँ से क्या शिक्षा लेगी ? स्त्री बिगडेगी तो उससे पैदा होने वाले बेटी-बेटा (स्त्री-पुरुष) दोनों बिगडेंगे. अगर स्त्री ठीक रहेगी तो पुरुष के बिगडने पर भी संतान नही बिगडेगी. अत: स्त्रीओं के चरित्र, शील, लजा आदि की रक्षा करना और उनको अपमानित न होने देना मनुष्य मात्र का कर्त्तव्य है !
***** हे माँ ****
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